भारत के पढ़े-लिखे युवाओं को अपने यहां खेती करने ले जा रहा है जापान, लाखो रूपए महीना मिलती है सैलरी
नई दिल्ली :- आज आपको एक ऐसी जानकारी देने वाले है जिसे सुनकर आप चौक जायेंगे. जापान भारत के पढ़े-लिखे युवाओं को अपने देश खेती करने के लिए लेके जा रहा है. निर्मल सिंह रंसवाल (Nirmal Singh Ranswal) उन्ही लोगों में से एक है. वे बारहवीं पास करने के बाद ही खेती करने के लिए जापान चले गए. उत्तराखंड के चंपावत का निर्मल खेती-बाड़ी के लिए जापान जाने वाले एक अकेले भारतीय नहीं हैं. जापान की 20 प्रतिशत से ज्यादा आबादी अब उम्र अधिक होने के कारण काम करने की स्थिति में नहीं है. इस कारण वहां खेती-किसानी करने वाले लोग कम ही रह गए है.
जापान ने किया भारत सरकार के साथ समझौता
बता दें कि, जापान ने भारत सरकार के साथ एक समझौता किया हुआ है. इसके अनुसार भारत सरकार एक कार्यक्रम चला रही है जिसमें जापान की जरूरतों के हिसाब से युवाओं को आवश्यक ट्रेनिंग दी जा रही है. पिछले वर्ष पहले पहल जापान 18 लोग गए थे जिनमे निर्मल सिंह भी शामिल हुए थे. यह सिलसिला इस वर्ष भी इसी तरह चल रहा है.
2030 तक बढ़ जायेगा यह सिलसिला
जानकारी के मुताबिक, जापान की बड़ी आबादी के बुजुर्ग होने का असर जीडीपी और औद्योगिक उत्पादन से लेकर वहां के शहरों के आकार और पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तक देखने को मिल रहा है. वहां की 20 प्रतिशत आबादी 65 वर्ष से ज्यादा उम्र की हो गयी है. यह दुनिया में किसी भी देश के मुकाबले बुजुर्गों की औसत आबादी से काफ़ी अधिक है. संभावना है कि 2030 तक यह सिलसिला और भी बढ़ जाएगा. तब जापान में हर तीसरे व्यक्ति की उम्र 65 वर्ष से ज्यादा हो जाएगी, जबकि हर पांचवां व्यक्ति 75 वर्ष से अधिक उम्र का होगा. ऐसे में श्रमिकों की वहां भारी मांग होने वाली है.
जापान ने भारत की रिक्रूटमेंट एजेंसियों से बात-चीत
बता दें कि, अभी जापानी कंपनियों ने कोयामाकी नाम की एक फसल कटाई के लिए भारत की रिक्रूटमेंट एजेंसियों से बात-चीत की है. कोयामाकी की फसल की खेती पहाड़ों पर की जाती है.
खेती-किसानी में रोजगार के बहुत सारे अवसर उपलब्ध
सूत्रों के अनुसार, आंकड़े बताते हैं कि दिसंबर 2022 तक भारत से 598 युवा अपना देश छोड़ जापान चले गए थे. इन सभी ने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) की तरफ से संचालित टेक्निकल इंटर्न ट्रेनिंग प्रोग्राम के अनुसार अलग-अलग गुर सीख लिए हैं. महाराष्ट्र के कौशल विकास मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने कहा कि इन 598 प्रशिक्षित लोगों में 34 को महाराष्ट्र से नौकरी पर रख लिया है. उन्होंने कहा कि भारतीय युवाओं के पास खेती-किसानी में रोजगार के बहुत सारे अवसर उपलब्ध है.
जापान में सैलरी 75 हजार प्रतिमाह
जिनके पास खेतों में काम करने का अनुभव हो या फिर उन्होंने खेती या बागवानी में कोई डिग्री ली हुई हो.’ जापान में ऐसे लोगों को सैलरी के अलावा इंश्योरेंस और रहने की जगह भी प्रदान की जाती है जहां वाइफाइ की सुविधा भी उपलब्ध कराई जाती है. यही वजह है कि भारत में मजदूरी करने वाले परिवारों के मन में अपने बच्चों को जापान भेजने की इच्छा है.
श्रीवास्तव ने दी जापान के रहन-सहन के बारे में जानकारी
बता दें कि, हरियाणा में पलवल के शिव कुमार और बैनीगंज के सतीश कुमार श्रीवास्तव भी उन लोगों में शामिल हैं जो पिछले वर्ष जापान गए थे. वहां उनका पहला हफ्ता थोड़ा मुश्किलों में कटा था. उसके बाद तो जिंदगी के मजे में गुजर होने लगी. श्रीवास्तव ने बताया हैं कि ‘हमारी कंपनी के मालिक भी हमारे साथ काम करते हैं. वहां कोई भी किसी से ऊंची आवाज में बात नहीं करता है. छोटी-छोटी बात की योजना बनाई जाती है और मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने के तरीकों को अमल में लाया जाता है. उन्होंने बताया कि एक बार शिव कुमार को लंच ब्रेक के बाद काम पर लौटने में एक मिनट की देरी पर ही कॉल आ गई थी. वो कहते हैं, ‘तब से मैं कभी भी लेट नहीं होता हूं. उन्होंने कहा कि मुझे चिंता हो रही है कि इतना अनुशासित हो जाने के बाद भारत लौटूंगा तो वहां कैसे खुद को सेटल कर पाऊंगा.’ बता दें कि शिव कुमार का जापानी कंपनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट तीन वर्ष का ही है.