Indian History

Mughal History: जहांदार शाह तवायफ को देता था दो करोड़ की मोटी रकम, कहने पर खुद के बेटों की फोड़ दी आंखे

नई दिल्ली :- साल 1712 में बहादुर शाह (प्रथम) की मृत्यु के बाद उसके बेटे जहांदार शाह ने मुगल सल्तनत की गद्दी को संभाला था. जहांदार अपनी अयाशियों के लिए जाना जाता था. बता दें कि तानसेन के वंशज खसूरियत खान की बेटी लालकुंवर पर जहांदार का दिल आ गया और उसने मुगल सल्तनत की बागडोर लगभग उसके हाथों में ही सौंप दी थी. तवायफ लाल कुंवर जहांदार शाह से उम्र में लगभग दोगुनी थी. उन्होंने भी जहांदार शाह के इस दीवानेपन का पूरा लाभ उठाया.

Join WhatsApp Group Join Now
Join Telegram Group Join Now

पढ़े-लिखे और विद्वान अधिकारियों को निकाला दरबार से

लोक भारती पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई राजगोपाल सिंह वर्मा की किताब ‘KingMakers’ में कहा गया है कि लालकुंवर की इच्छाओं को पूरा करने के लिए जहांदार शाह अपने खजाने को बुरी तरह लुटाने लगा. लाल कुंवर के करीबियों, उसके भाइयों तथा दूर तक के रिश्तेदारों को सौगाते बांटी जाने लगी. लाल कुंवर पर हीरे – जवाहरात, घोड़े और जागीर सब कुछ न्योछावर कर दिया गया तथा दूसरी तरफ दरबार से पढ़े-लिखे और विद्वान अधिकारियों को निकाल दिया गया.

तवायफ को दिया जाता था 2 करोड रुपए का गुजारा भत्ता

राजगोपाल सिंह वर्मा ने अपनी किताब में लिखा है कि लाल कुंवर को उस समय में भी 2 करोड रुपए के बराबर का गुजारा भत्ता दिया जाता था. जब वह कहीं जाती थी तो उसकी पालकी के आगे पीछे सैकड़ों सैनिक Drum बजाते हुए चलते थे. करीब 500 लोगों का काफिला भी उसके साथ चलता था जैसे कि किसी बादशाह के साथ जा रहे हो.

बैलगाड़ी में छुप कर जाया करता था शराब पीने

कहा जाता है कि जहांदार शाह अपनी मनपसंद रखेलों और साथियों के साथ बैलगाड़ी में बैठकर शराब के अड्डे पर शराब पीने जा करता था ताकि उसे कोई पहचान ना पाए. एक रात वह लालकुंवर के साथ इसी शराब खाने गया और उसने इतनी पी ली कि उसे होश ही नहीं रहा. लालकुंवर तो अपने महल में आ गई लेकिन बादशाह बैलगाड़ी में ही पड़ा रहा. सुबह जब बादशाह महल में नहीं मिला तो हर तरफ हाहाकार मच गई. फिर लालकुंवर को याद आया कि उसे बैलगाड़ी से महल में लाया गया था.

तवायफ ने की मौत का मंजर देखने की इच्छा जाहिर

वर्मा ने अपनी किताब में लिखा है कि जहाँदार शाह लालकुवर के प्रेम में इतना पागल हो गया था कि वह कुछ भी करने को तैयार हो जाता था. एक दिन लाल कुंवर ने बादशाह से कहा कि मैंने कभी नदी में लोगों से भरी नाव को ढूंढते हुए नहीं देखा है. लोग कैसे चीखते – चिल्लाते है, खुद को बचाने की कोशिश कैसे करते हैं, मैं यह सब अपनी आंखों से देखना चाहती हूं. लालकुंवर की बात सुनकर बादशाह ने कहा कि अच्छा तुम मौत का मंजर देखना चाहती हो. लालकुंवर की इस इच्छा को पूरी करने के पूरे इंतजाम कर दिए गए. जहाँदार शाह और लालकुंवर लाल किले में एक ऊंची जगह पर बैठ गए. यमुना नदी में मुसाफिरों से भरी हुई एक नाव रोक ली गई. लोग चीखने चिल्लाने लगे, लेकिन सैनिकों ने उनकी एक भी न सुनी. यात्रियों से भरी हुई नाव को डुबो दिया गया. जैसे – जैसे लोग डूब रहे थे इधर किले पर बैठी लाल कुंवर हंस-हंसकर तालियां बजा रही थी. इस घटना में 25 लोगों की मौत हो गई थी.

तवायफ के कहने पर बेटों की फोड़ दी आंखे

वर्मा ने अपनी किताब में जिक्र किया है कि लालकुंवर को जहाँदार शाह के बेटे एक नजर भी अच्छे नहीं लगते थे. इसीलिए उसने जहाँदार शाह के सगे बेटों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया और एक दिन बादशाह से कहा कि वह अपने दोनों बेटों की आंखों को फोड़ दे और उन्हें जेल में डाल दे. बादशाह ने भी बिल्कुल वैसा ही किया जैसे लाल कुंवर ने उसे करने को कहा था.

Prashant Dagar

नमस्कार दोस्तों मेरा नाम प्रशांत डागर है. मैं खबरी राजा की टीम में बतौर कंटेंट राइटर अपनी सेवा दे रहा हूँ. इससे पहले मैंने हरियाणा की चौपाल टीवी में बतौर कंटेंट राइटर अपनी सेवा दी है. हर सच से आपको रूबरू करवाना मेरा पहला कर्तव्य है.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button